जेश खन्ना एक प्रसिद्ध भारतीय हिंदी फिल्म अभिनेता, फिल्म निर्माता और राजनीतिज्ञ थे। राजेश खन्ना ने कुल मिलाकर 163 फीचर फिल्मों और 17 शार्ट फिल्मों में अभिनय किया है। राजेश खन्ना ने तीन फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरुस्कार जीते और वह फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरुस्कार के लिए 14 बार नामांकित हुए थे। राजेश खन्ना को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए चार-बार बीएफजेए पुरस्कार भी मिला और वह उसके लिए 25 बार नामांकित हुए थे। वर्ष 2005 में, राजेश खन्ना को फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था। राजेश खन्ना को “हिंदी फिल्म के मूल सुपरस्टार” के रूप में जाना जाता है।
राजेश खन्ना का जीवन परिचय ! LIFE STAYLE ! RAJESH KHANNA Biography in Hindi ! JASUS007
60 के दशक के उत्तरार्ध और 70 के दशक के पूर्वार्ध का सुपरस्टार अचानक अपनी चमक खोने लगा.
जिस सितारे ने लगातार 15 हिट फिल्में दीं, जिसकी एक झलक पाने के लिए हज़ारों लोग लाइन लगाकर खड़े रहते थे, जिसकी कार पर युवा लड़कियों के लिपस्टिक के निशान हुआ करते थे और जो उसे खून से लिखी चिट्ठियां भेजा करती थी वो इंसान अचानक कामयाबी के शिखर से क्यों लुढ़कने लगा. इस पर बीबीसी ने उनके कई साथी कलाकारों और फिल्म विशेषज्ञों की राय जाननी चाही.
नहीं संभाल पाए स्टारडम
राजेश खन्ना की शुरुआती फिल्मों से एक ‘खामोशी’ में उनके साथ काम कर चुकी चर्चित अभिनेत्री वहीदा रहमान कहती हैं, “देखिए जब कोई पहाड़ की चोटी पर पहुंचता है तो उसे एक ना एक दिन नीचे तो आना ही पड़ता है. ये बहुत स्वाभाविक सी बात है.”
जब बीबीसी ने उनसे पूछा कि लेकिन राजेश खन्ना का इतनी तेजी से पतन स्वाभाविक तो नहीं था, उसकी भला क्या वजह थी, तो वहीदा बोलीं, “दरअसल वो अपनी स्टारडम संभाल नहीं पाए. जैसे जैसे इंसान की उम्र बढ़ती है उसे अपने आपको बदलते रहना चाहिए. स्वीकार कर लेना चाहिए कि अब आपमें वो बात नहीं रही. और फिर उसी हिसाब से अगर वो फिल्मों का चुनाव करते तो शायद उनकी कामयाबी की पारी और लंबी चलती. लेकिन वो ऐसा कर नहीं पाए. वो बहुत ज्यादा अपनी कामयाबी के दिनों में ही खोए रहे.”
ऋषिकेश मुखर्जी की सुपरहिट फिल्म ‘नमक हराम’ सहित राजेश खन्ना के साथ नौ फिल्में कर चुके अभिनेता रजा मुराद भी कुछ ऐसी ही राय रखते हैं.
रजा के मुताबिक, “राजेश खन्ना बेहद दिलदार आदमी थे. उनके घर पर देर रात तक महफिलें जमा करती थीं और इस वजह से वो अपनी फिल्मों के सेट पर देर से पहुंचने लगे. इस वजह से उनके निर्माता उनसे परेशान रहने लगे. फिर रात को देर देर तक जागने और अपनी अनुशासनहीन जीवन शैली की वजह से उनके खूबसूरत चेहरे पर भी फर्क पड़ने लगा. कभी टमाटर की तरह सुर्ख लाल रहने वाला उनका चेहरा निस्तेज सा लगने लगा. और इसके बाद उनकी नाकामयाबी का दौर शुरू हो गया.”
रजा मुराद कहते हैं कि जब हाल ही में उन्होंने राजेश खन्ना को एक टीवी के विज्ञापन में देखा तो उन्हें बेहद दुख हुआ कि उनका ये बेहद खूबसूरत साथी अब कैसा कमजोर दिखने लगा है.
पुरानी कामयाबी में ही खोए रहे
फिल्म समीक्षक नम्रता जोशी राजेश खन्ना के पतन की वजह ये मानती हैं कि वो बदलते वक्त के साथ अपने आपको ढाल नहीं पाए.
नम्रता कहती हैं, “किसी भी स्टार की कामयाबी का एक दौर होता है. फिर वक्त बदलता है. राजेश खन्ना अपने पुराने दिनों में ही खोए रहते. 70 के दशक में अमिताभ बच्चन का आगाज हुआ. तो कामयाबी राजेश खन्ना के हाथ से सरकने लगी. वक्त बदल रहा था. लोग रोमांटिक फिल्मों से बोर होने लगे थे. अमिताभ बच्चन का एंग्री यंग मैन अवतार लोगों को भाने लगा था. ऐसे में लोग राजेश खन्ना के वही पुराने चिर परिचित हाव भाव देखकर उकताने लगे थे.”
रोमांस का राजा
नम्रता के मुताबिक राजेश खन्ना एक कलाकार नहीं बल्कि एक स्टार थे. शायद ये भी एक वजह थी उनके कामयाबी के शिखर से नीचे गिरने की.
वो अपनी फिल्मों के सेट पर देर से पहुंचने लगे. इस वजह से उनके निर्माता उनसे परेशान रहने लगे. फिर देर रात तक जागने और अपनी अनुशासनहीन जीवन शैली की वजह से उनके खूबसूरत चेहरे पर भी फर्क पड़ने लगा. कभी टमाटर की तरह सुर्ख लाल रहने वाला उनका चेहरा निस्तेज सा लगने लगा.
नम्रता ने कहा कि जिस तरह से अमिताभ बच्चन ने टीवी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में काम किया और फिर बाद में ‘बागबान’ जैसी फिल्मों में चरित्र रोल करने लगे वैसा ‘काका’ नहीं कर पाए.
काका को श्रद्धांजलि
वरिष्ठ फिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे की राय भी कुछ कुछ ऐसी ही है.
जयप्रकाश चौकसे कहते हैं, “राजेश खन्ना एक मैनरिज्म वाले कलाकार थे. सिर्फ मैनरिज्म के सहारे कोई कलाकार लंबे वक्त तक नहीं खिंच सकता. अमिताभ बच्चन की कामयाबी का सफर इसलिए बेहद लंबा रहा क्योंकि वो एक बेहतरीन अभिनेता भी हैं. इस वजह से उम्र के इस पड़ाव में भी उन्हें तमाम रोल मिल रहे हैं. राजेश खन्ना के साथ ये बात नहीं थी. वो सिर्फ अपनी अदाओं और लटके झटकों पर ही निर्भर रहे. लेकिन हां, ऋषिकेश मुखर्जी की ‘आनंद’ और’ सफर’, ये दो ऐसी फिल्में थीं, जिसमें राजेश खन्ना ने कमाल का अभिनय किया.”
लेकिन ये तमाम लोग एक बात पर सहमत हैं. वो ये कि राजेश खन्ना का सुपरस्टारडम भले ही ज्यादा लंबा नहीं चला लेकिन जिस कदर उस छोटे से दौर में लोगों ने उन्हें चाहा, उन्हें लेकर जो दीवानगी थी, वैसी शायद हिंदी फिल्मों के किसी अभिनेता को नसीब नहीं हुई.
मेरे सपनों की रानी’ और ‘रूप तेरा मस्ताना…’ जैसे रोमांटिक गीतों के भावों को अपनी जज्बाती अदाकारी से जीवंत करने वाले राजेश खन्ना ने अपने जमाने में लगातार 15 हिट फिल्में देकर बालीवुड को ‘सुपर स्टार’ की परिभाषा दी थी.
राजेश खन्ना के बालों का स्टाइल हो, या ड्रैसअप होने का तरीका, उनकी संवाद अदायगी हो या पलकों को हल्के से झुकाकर, गर्दन टेढी कर निगाहों के तीर छोड़ने की अदा.. उनकी हर अदा कातिलाना थी. उनकी फिल्मों के एक एक रोमांटिक डायलॉग पर सिनेमाघरों के नीम अंधेरे में सीटियां ही सीटियां गूंजती थी.
69 वर्षीय बालीवुड के ‘सुपर स्टार’ ने मुंबई के बांद्रा स्थित अपने घर पर अंतिम सांस ली.
राजेश खन्ना को ऐसे ही सुपर स्टार नहीं कहा जाता था. युवक और युवतियां उनके इस कदर दीवाने थे कि बाजारों में निकलने पर युवतियां पागलों की तरह उनकी कार को चूमती थी और कार पर लिपस्टिक के दाग ही दाग होते थे. युवतियां उन्हें अपने खून से लिखे खत भेजा करती थीं.
उनसे पहले के स्टार राज कपूर और दिलीप कुमार के लिए भी लोग पागल रहते थे लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि जो दीवानगी राजेश खन्ना के लिए थी, वैसी पहले या बाद में कभी नहीं दिखी.
29 दिसंबर 1942 को राजेश खन्ना का जन्म अमृतसर में हुआ था और उनकी परवरिश उनके दत्तक माता पिता ने की. उनका नाम पहले जतिन खन्ना था. स्कूली दिनों से ही राजेश खन्ना का झुकाव अभिनय की ओर हो गया था और इसी के चलते उन्होंने कई नाटकों में अभिनय भी किया.
सपनों के पंख लगने की उम्र आयी तो जतिन ने फिल्मों की राह पकड़ने का फैसला किया. यह दौर उनकी जिंदगी की नयी इबारत लिखकर लाया और उनके चाचा ने उनका नाम जतिन से बदल कर राजेश कर दिया. इस नाम ने न केवल उन्हें शोहरत दी बल्कि यह नाम हर युवक और युवती के ज़ेहन में अमर हो गया.
1965 में राजेश खन्ना ने यूनाइटेड प्रोड्यूर्स एंड फिल्मफेयर के प्रतिभा खोज अभियान में बाजी मारी और उसके बाद शोहरत और दौलत उनके कदम चूमती चली गयी. उनकी सबसे पहली फिल्म ‘आखिरी खत’ थी जिसे चेतन आनंद ने निर्देशित किया था. उन्हें दूसरी फिल्म मिली ‘राज़’. यह फिल्म भी प्रतियोगिता जीतने का ही पुरस्कार थी.
उस दौर में दिलीप कुमार और राज कपूर के अभिनय का डंका बजता था और किसी को अहसास भी नहीं था कि एक ‘नया सितारा’ शोहरत के आसमान को कब्जाने के लिए बढ़ रहा है. राजेश खन्ना ने ‘बहारों के सपने’, ‘औरत’, ‘डोली’ और ‘इत्तेफाक’ जैसी शुरुआती सफल फिल्में दीं लेकिन 1969 में आयी ‘आराधना’ ने बॉलीवुड में ‘काका’ के दौर की शुरुआत कर दी.
‘आराधना’ में राजेश खन्ना और हुस्न परी शर्मिला टैगोर की जोड़ी ने सिल्वर स्क्रीन पर रोमांस और जज्बातों का वो गजब चित्रण किया कि लाखों युवतियों की रातों की नींद उड़ने लगी और ‘काका’ प्रेम का नया प्रतीक बन गए.
‘आराधना’ फिल्म से किशोर कुमार जैसे गायक को भी हिंदी फिल्म जगत में खुद को स्थापित करने का मौका मिला और अंतत: वह राजेश खन्ना के गीतों की स्थायी आवाज बन गए.
राजेश खन्ना की भावुक अदाकारी और किशोर की आवाज ने मिलकर सफलता के झंडे गाड़ दिए. अदाकारी और आवाज के इस मिलन ने बालीवुड को ‘मेरे सपनों की रानी’, ‘रूप तेरा मस्ताना’, ‘कुछ तो लोग कहेंगे’, ‘जय जय शिवशंकर’ और ‘जिंदगी कैसी है पहेली’ जैसे कालजयी गाने दिए.
‘आराधना’ और ‘हाथी मेरे साथी’ राजेश खन्ना की ऐसी सुपरहिट फिल्में थीं जिन्होंने बॉक्स आफिस पर सफलता के सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए. उन्होंने 163 फिल्मों में काम किया जिनमें से 106 फिल्मों को उन्होंने सिर्फ अपने दम पर सफलता प्रदान की. 22 फिल्में ऐसी थीं जिनमें उनके साथ उनकी टक्कर के अन्य नायक भी मौजूद थे.
राजेश खन्ना ने 1969 से 1972 के बीच लगातार 15 सुपरहिट फिल्में दीं. इस रिकॉर्ड को आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है और इसी के बाद बालीवुड में ‘सुपरस्टार’ का आगाज हुआ.
उन्हें अपनी अदायगी के लिए तीन बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया और इस पुरस्कार के लिए उनका 14 बार नामांकन हुआ. वर्ष 2005 में उन्हें ‘फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट’ पुरस्कार प्रदान किया गया.
अपनी रोमांटिक छवि के बावजूद राजेश खन्ना ने विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं अदा की जिनमें लाइलाज बीमारी से जूझता आनंद, ‘बावर्ची’ का खानसामा, ‘अमर प्रेम’ का अकेला पति और ‘खामोशी का मानसिक रोगी की भूमिका शामिल थी.
बॉलीवुड का यह स्वर्णिम दौर था और राजेश खन्ना की अदाकारी के लिए यह सोने पर सुहागा साबित हुआ और उन्हें अपने समय के कला पारखियों के साथ काम करने का मौका मिला. फिर चाहे वे फिल्म निदेशक रहे हों या अभिनेत्रियां और संगीतकार.
‘अमर प्रेम’ और ‘आप की कसम’ जैसी कई फिल्मों में राजेश खन्ना की शर्मिला टैगोर और मुमताज के साथ ‘कैमेस्ट्री’ ऐसी मैच कर गयी कि इन्होंने एक के बाद एक सफल फिल्में दीं. राजेश खन्ना की प्रतिभा को शक्ति सामंत, यश चोपड़ा, मनमोहन देसाई, रिषिकेश मुखर्जी तथा रमेश सिप्पी ने और निखारा. आर डी बर्मन जैसी संगीतकार और किशोर के साथ राजेश खन्ना ने 30 से अधिक फिल्मों में काम किया.
राजेश खन्ना की फिल्में 1976-78 के दौरान पहले सी सफलता हासिल नहीं कर पायीं और 1978 के बाद उन्होंने ‘फिर वही रात’, ‘दर्द’, ‘धनवान’, ‘अवतार’ और ‘अगर तुम ना होते’ जैसी फिल्मों में अभिनय किया जो कमाई के लिहाज से सफल नहीं थीं लेकिन आलोचकों ने उन्हें जरूर सराहा.
लेकिन हर सितारा डूबता है और 80 के दशक के उत्तरार्ध में बॉक्स ऑफिस पर उनका जादू खत्म हो गया.
राजेश खन्ना 1992 से लेकर 1996 तक बतौर लोकसभा के सदस्य रहे. वह कांग्रेस के टिकट पर नयी दिल्ली सीट से जीते थे.
राजेश खन्ना के व्यक्तित्व के जादू ने न केवल उनके प्रशंसकों को दीवाना बनाया बल्कि सुनहरे दिनों में तीन-तीन बालीवुड अभिनेत्रियों पर भी उनका जादू चला. 70 के दशक में उनका अंजू महेन्द्रू के साथ लंबे समय तक प्रेम संबंध चला. बाद में उन्होंने अपने से 15 साल छोटी डिंपल कपाड़िया से 1973 में शादी कर ली जिनसे उनकी दो बेटियां ट्विंकल और रिंकी हैं.
डिंपल कपाड़िया 1984 में राजेश खन्ना से अलग हो गयीं. हालांकि वे अलग अलग रहते रहे लेकिन कभी औपचारिक रूप से तलाक नहीं लिया.
राजेश खन्ना का ‘सौतन’ की अपनी नायिका टीना मुनीम से भी नाम जुड़ा. इस जोड़ी ने ‘फिफ्टी फिफ्टी’, ‘बेवफाई’, ‘सुराग’, ‘इंसाफ मैं करूंगा’ तथा ‘अधिकार’ जैसी फिल्में दीं. जब वह सांसद थे तो उन्होंने अपना पूरा समय राजनीति को दिया और अभिनय की पेशकशों को ठुकरा दिया. उन्होंने वर्ष 2012 के आम चुनाव में भी पंजाब में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार किया था.
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Jasus is a Masters in Business Administration by education. After completing her post-graduation, Jasus jumped the journalism bandwagon as a freelance journalist. Soon after that he landed a job of reporter and has been climbing the news industry ladder ever since to reach the post of editor at Our JASUS 007 News.