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जिसके महल में कभी काम करते थे 6000 लोग, अब उसकी संपत्ति का फैसला होगा यहां

भारत में धनकुबेरों का नाम लेते ही टाटा, बिड़ला और अंबानी के नाम याद आते हैं। यहां तक कि धनवान कहने के लिए आम बोलचाल में लोग बाग ‘टाटा-बिड़ला’ तक कह देते हैं। लेकिन हकीकत में तथ्य कुछ और है। हम बात कर रहें हैदराबाद के निजाम ‘मीर उस्मान अली’ की जो महज 25 साल की उम्र में निजाम बने थे। 1886 में पैदा हुए खान का 80 साल की उम्र में 1967 में निधन हुआ था। जो अपने समय के सबसे अमीर आदमी थे।

 

कहते है किसी को रईसी बताने का शौक होता है तो कोई अपनी अमीरी को दिखाता है। हैदराबाद के निजाम की कुल संपत्ति अमेरिका की कुल अर्थव्यवस्था का 2 प्रतिशत थी। इसी के चलते टाइम पत्रिका ने सन 1937 में उनकी फोटो अपनी मैगजीन के कवर पेज पर लगाई थी। स्कॉटलैंड और इंग्लैंड को मिला दें उससे भी बड़ी उनकी रियासत थी। भारत की इस सबसे बड़ी रियासत के शासक और आखिरी निजाम जीते जी दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति थे।

 

निजाम की रईसी का आंकलन इसी बात से लगा सकते है कि वो  20 करोड़ डॉलर (1340 करोड़ रुपए) की कीमत वाले डायमंड का इस्तेमाल पेपरवेट के तौर पर किया करता थे। महल के सिर्फ झूमर से झूल झाड़ने के लिए 38 नौकर काम करते थे। निजाम के अपने पैलेस में करीब 6000 लोग काम किया करते थे। जबकि मौजूदा दौर में नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में महज 1500 लोगों का ही स्टाफ काम करता है।

निजाम ने 1948 में लंदन के नेटवेस्ट बैंक में 1,007,940 पौंड करीब (करीब 8 करोड़ 87 लाख रुपये) कराई थी। यह राशि तब जमा कराई गई थी जब भारत सरकार हैदराबाद का विलय कराने का प्लान बना रही थी। अब यह रकम बढ़कर करीब 35 मिलियन पौंड (करीब 3 अरब 8 करोड़ 40 लाख रुपये) हो चुकी है। इस भारी रकम पर दोनों ही देश अपना हक जताते रहे हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच आजादी के बाद से हैदराबाद निजाम के 308 करोड़ रुपए के मालिकाना हक को लेकर लड़ाई जारी है।

 

 

ब्रिटिश हाईकोर्ट अगले छह सप्ताह में इस पर फैसला सुना सकता है। रुपयों के मालिकाना हक को लेकर पाकिस्तान के खिलाफ चल रही इस कानूनी लड़ाई में निजाम के वंशज प्रिंस मुकर्रम जाह और उनके छोटे भाई मुफ्फखम जाह भारत सरकार के साथ हैं।

 

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